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मंगलवार, 27 अगस्त 2019

कामरेड चिंतातुर ठहरे

कामरेड को चिंता घर की
और चिंता है दुनिया भर की

बाल श्रमिक की चिंता करते
छोटू को चांटे भी जड़ते

चिंता उनको पुरुषवाद की
बीवी चार यथावत रखते

फ़ैक्ट्री में हड़ताल कराते
वेतन बाई का टरकाते

साम्यवाद वे ला के रहेंगे
कार पीयन से फ़्री चमकाते

बात ग़रीबों की करते हैं
धन निवेश अपना करते हैं

ब्राह्मण को वे रोग बताते
मंतर शादी में पढ़वाते

जन्मभूमि पर हॉस्पिटल
बनवाने को धरना धरते

दवा मुफ़्त में ला-लाकर के
जमा खूब लॉकर में करते

श्रीनगर में हुर्रियत की
फ़िकर बड़ी वे सो न पाते

बाल्टिस्तान से हॉङ्गकॉङ्ग तक
क्या होता यह खबर न पाते

स्त्री को अधिकार मिलें सब
दिखती पोलित ब्यूरो में कब?

कृषि पर न लगने देंगे कर
गमले में गल्ला उपजाकर

हर साथी को घर होना है
घर घर में हँसिया बोना है

रक्त बहे बिन लाल न धरती
लाल सलाम कहाँ से करती?

दुनिया में सब जान गये हैं
साम्यवाद पहचान गये हैं

बंदूकों से लोग गिराये
घर मंदिर इस्कूल जलाये

निजी स्वतंत्रता टैंक के नीचे
डिक्टेटर के भजन गवाये

मूर्ति भञ्ज के लोकतंत्र की
जनप्रतिनिधि सब अधम बताये

जनसेवक जमकर धमकाये
मार-मार कर ढेर लगाये

फिर किसको पूजेगी जनता
सो अपने ही बुत जड़वाये

चुरुट छोड़ सब जाग गये बुत
उखड़-उखड़ के भाग गये हैं

सुनता कोई न अब बेपर की
कामरेड को चिंता घर की।

~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"


शनिवार, 20 जुलाई 2019

एक अकेला इस शहर में

ऐशो-शोहरत की दुनिया में फिरते ये दुखियारे क्यों
दिन क्यों ढलता सूरज डूबे, छाये है अंधियारे क्यों

अपने में गुमसुम से हैं सब कोई किसको क्यों पूछे
काम नहीं जो आने वाला, उसको कोई पुकारे क्यों

डिस्पोज़ेबल दुनिया में हो ज़िकर मरम्मत का कैसे
जो भी फेंका जा सकता है उसको भला सँवारे क्यों

बंद कर दिया पीना, धोना, ब्राह्मणवाद नहाने का
बाढ़ बहाती फिर भी लेकिन नर-डंगर-घर-द्वारे क्यों

मानव हों या देश सभी से नाता तोड़ा जा सकता है
अधिकारों का शोर मचाओ, कर्त्तव्यों के नारे क्यों

महल बड़ा पर सिमट गया हूँ बेसमेंट के कोने में
पेट-पीठ सब एक हुये पर लेते सब चटखारे क्यों

~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"


गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

प्रेम गिलहरी दिल अखरोट


खस्ता शेर के सभी पाठकों को नववर्ष 2016 के आगमन पर हार्दिक मंगलकामनाएं!

युवा कवयित्री बाबुशा कोहली की पंक्ति "प्रेम गिलहरी दिल अखरोट" को विस्तार दिया अनुराग शर्मा ने

प्रेम गिलहरी दिल अखरोट
प्रेम लतीफा दिल लोटपोट

प्रेम इलेक्शन दिल का वोट
प्रेम गांधी तो दिल है नोट

प्रेम का कर्जा दिल प्रोनोट
प्रेम मथानी दिल को घोट

प्रेम TNT दिल विस्फोट
प्रेम के पत्थर दिल की चोट

प्रेम प्यास दिल सूखे होट
प्रेमी थीसिस दिल फुटनोट

~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

फेसबुकी शायरी

खुदा करे के मुहब्बत में वो मुकाम आये 
ब्लॉककर्ता क्षमा मांगने हमारे धाम आये 
फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे और तुरत ये पयाम पाये
This person can't accept new friend requests, has reached maximum limit

एक फेसबुकी पैरोडी
अश'आर मेरे यूं तो ब्लॉगियाने के लिए हैं 
 कुछ शेर फेसबुक पर टिपियाने के लिए हैं

फेसबुकी टिप्पणी पर दाग़ की याद
किस क़दर उनको फिराक़-ए-ग़ैर का अफसोस है 
हाथ मलते-मलते सब रंग-ए-हिना जाता रहा (~ दाग़) 
हल्के से कहने से अपनी बात ही हल्की हुई 
फ़ेसबुक की टिप्पणी, सारा मज़ा जाता रहा (~ राग)


अब अपनी चार लाइना चचा गालिब की ज़मीन पर
मैं मर गया तो क्या हुआ बनी रहे ये दुश्मनी 
मेरी कबर पे फातेहा, आ के कोई पढ़ाये क्यूँ। 


और अंत में प्रेमकाव्य
वो मिटियॉर सी गुज़रती हैं 
दिल ये तारे सा टूट जाता है 

 ~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

चंद रामपुरी अश'आर चक्कू वाले

घूमते हैं लय के पहिये, मजबूत है तुक की धुरी
धुल गए सुर्मा बरेलवी, चलते हैं चक्कू रामपुरी

बात कितनी भी खरी हो धार ही बस खास है
कट्टे दुनाली किसे चहिए रामपुरी जो पास है

जिस तरें उस्तरे से हजामत है
चक्कू रामपुरी से,  क़यामत है

ओखल में सर देते हैं और मूसल देख के हँसते हैं 
ऐसे तुर्रमखाँ भी चक्कू रामपुरी को देखके डरते हैं

                            ~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

इधर खुदा है उधर खुदा है

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 11)

भावार्थ:  जो मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्गका अनुसरण करते हैं ।


दो फुटकर खस्ता शेर मरम्मत के इंतज़ार में बैठे हैं। हर मुनासिब पेशकश कुबूल की जाएगी. अर्ज़ किया है:

कैसे कहूँ खुदा नहीं करता है मुझको याद
हर  पंगा  मेरे  साथ ही  लेता  रहा  है  वह

कैसे कहूँ खुदा नहीं करता है मुझको मात
हर बाज़ी मेरे साथ ही क्यूँ खेला करे है वो

गुरुवार, 24 मई 2012

टांग चबाते रहिये

(चित्र व दोहे: अनुराग शर्मा)


जापान से स्वर्णजटित मिष्ठान्न
अंटी में नामा भरा अपनी सुनाते रहिये
माल जो मुफ्त मिले जम के उड़ाते रहिये

नज़्र चूके औ वो सामने पड़ जायें तौ
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये*

हूट करता हो जहाँ, बोर न समझें खुद को
टोके जग सारा तो भी अपनी बताते रहिये

जो कही खूब कही अब तो निकल ले शायर
रात भर शेर सुने सामयीन सताते रहिये

रूप गुण काम नहीं आते हैं इस दुनिया में
सौदागर फूस के हैं स्वर्ण छिपाते रहिये
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* एक प्रसिद्ध शायर की शब्दावली से साभार

शनिवार, 24 मार्च 2012

किसने क्या किया?

किसी ने नाम दिया
किसी ने दाम लिया
गिरने लगे जब भी
किसी ने थाम लिया
(~ अनुराग शर्मा)

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

2012 की खस्ता शुभकामनायें!


(चचा ग़ालिब से क्षमा याचना सहित)
हजारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
जहाँ पढने की बातें हों, वहाँ से बचके हम निकले
शराबी जूस भी लाये, मनाये ये कि रम निकले
मिले भुगतान जो तुमसे, गिने फिर भी वे कम निकले
लगा थैले में पैसे हैं, खुला तो फ़टते बम निकले
चचा सूरज से चमके थे, भतीजे हिम से जम निकले
[अभी का तापक्रम 10°F (शून्य से 12.22°C नीचे) है]