~ उस्ताद चक्कू रामपुरी 'अहिंसक'
अपनी अपनी दोस्ती, अपने अपने पीर
कोई हल्का रह गया कोई हुआ गम्भीर॥
जब तक हम चुप्पा रहे, दे गए चोट पे चोट
छिपके हम भी कट लिये न सहें खोट पे खोट॥
जो जो जिसके भाग में, पावै सो सो सोय
चेरो आगे बढ़ गयो, क्यों गुर नाहक रोय॥
जब था फैलाना रायता तो धर दिया मिष्टी दही
आप जैसे 'परग्रही*' अभियान में शामिल नहीं॥
खाट खड़ी तब जानिये, जब बंदा भू परि जाय
खीर पकी तब जानिये जब मुँह मीठा हो जाय॥
हमको पका सकें जो, वे हमें जोड़ते नहीं
जो बच गये भोले, उन्हें हम छोड़ते नहीं॥
लिंक मांगकर खुश किये लिंक विज़िट करी नाहिं
रहिमन ऐसे मित्र को, कभी ब्लॉग दिखावत नाहिं॥
अब एक शेर दिल्ली शहर के राष्ट्रसंघ सम्राट के सम्मान में
खाँसियों का बड़ा सहारा है,
फाँसियों ने तो सिर्फ़ मारा है॥
*परग्रही = एलियन
सोमवार, 9 अक्तूबर 2017
मंगलवार, 21 मार्च 2017
खस्ता ग़ज़ल (३+२=५)
कटे किनारे कई भँवर मझधार मिले।
पानी में सब डूबते भँइसवार मिले॥ (गिरिजेश राव)
घर तो छूटा ही बस्ती भी छूट गई,
लवमैरिज में ऐसे रिश्तेदार मिले। (अनुराग शर्मा)
बना स्कीम भागा कन्हैया फाँसी से,
खुदकुशी पोस्टपोन बाहर इनार मिले। (गिरिजेश राव)
रहम की मांग रहा था भीख जिनसे वो,
हाकिम सभी जालिम व अनुदार मिले। (अनुराग शर्मा)
चलता रहा आँख मीचे ऊँट क्षितिज तक,
साँझ खोली पहाड़ों के अन्हार मिले। (गिरिजेश राव)
पानी में सब डूबते भँइसवार मिले॥ (गिरिजेश राव)
घर तो छूटा ही बस्ती भी छूट गई,
लवमैरिज में ऐसे रिश्तेदार मिले। (अनुराग शर्मा)
बना स्कीम भागा कन्हैया फाँसी से,
खुदकुशी पोस्टपोन बाहर इनार मिले। (गिरिजेश राव)
रहम की मांग रहा था भीख जिनसे वो,
हाकिम सभी जालिम व अनुदार मिले। (अनुराग शर्मा)
चलता रहा आँख मीचे ऊँट क्षितिज तक,
साँझ खोली पहाड़ों के अन्हार मिले। (गिरिजेश राव)
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