सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

दोस्ती पर खस्ता दोहावली + राजनीति पर शेर

उस्ताद चक्कू रामपुरी 'अहिंसक'

अपनी अपनी दोस्ती, अपने अपने पीर
कोई हल्का रह गया कोई हुआ गम्भीर

जब तक हम चुप्पा रहे, दे गए चोट पे चोट
छिपके हम भी कट लिये न सहें खोट पे खोट

जो जो जिसके भाग में, पावै सो सो सोय 
चेरो आगे बढ़ गयो, क्यों गुर नाहक रोय

जब था फैलाना रायता तो धर दिया मिष्टी दही 
आप जैसे 'परग्रही*' अभियान में शामिल नहीं॥

खाट खड़ी तब जानिये, जब बंदा भू परि जाय
खीर पकी तब जानिये जब मुँह मीठा हो जाय

हमको पका सकें जो, वे हमें जोड़ते नहीं 
जो बच गये भोले, उन्हें हम छोड़ते नहीं

लिंक मांगकर खुश किये लिंक विज़िट करी नाहिं
रहिमन ऐसे मित्र को, कभी ब्लॉग दिखावत नाहिं

अब एक शेर दिल्ली शहर के राष्ट्रसंघ सम्राट के सम्मान में
खाँसियों का बड़ा सहारा है,
फाँसियों ने तो सिर्फ़ मारा है


*परग्रही = एलियन

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