खिड़की पर ओर्किड |
कभी काग़ज़ी बादाम हैं
कभी ये टपके आम हैं
तारीफ़ अपनी क्या करें
जो आदमी गुमनाम हैं
कभी ये बिगड़ा काम हैं
कभी छलकता जाम हैं
कैसे मियाँ मिट्ठू बनें
जो आदमी बदनाम हैं
रक़ीबों का पयाम हैं
सुबह न गुज़री शाम हैं
अपने मुँह से क्या कहें
जो हर तरफ़ नाकाम हैं