काजू सड़ते शराब हो जाते
गदहे सज के नवाब हो जाते
पानी खेतों में पड़ गया होता
गेंहूँ खिल के गुलाब हो जाते
हमें साफा व सूट फिट आता
खुद ही कटके कबाब हो जाते
इश्क़ में सर नहीं गंवाते हम
तेरे दिल की किताब हो जाते
ढूंढते आप पर न मिलता मैं
पल में सारे हिसाब हो जाते
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(अनुराग शर्मा) |