मुँह में आँत न पेट में दाँत, चले ब्याह रचाने कुछ ही गज पर खड़े हुए यमदूत लिवाने |
चौथी शादी करे है विधुर नगर का सेठ
नगर का सेठ, ब्याह में जुटे हजारों लोग
पॉपधुनों पर नाचते छकते छप्पन भोग
छकते छप्पन भोग चकित हैं नर नारी
बूढ़े संग जीवन काटेगी कमसिन बेचारी
बेचारी के दुख से द्रवित हुए संपादक
इंटरव्यू करने चले बनकर ये याचक
याचक जी पूछन लगे वधू पक्ष के तीर
ताऊ पे दिल आ गया क्या तेरी तक़दीर
तक़दीरों की बात पे चहकी भोली बाला
घूँघट से बाहर आकर स्टेटमेंट दे डाला
डाला पत्थर ताल, बवंडर करती वायु
बुद्धिमती वर देखती, नहीं देखती आयु
आयु से क्या लाभ, काम आती है इन्कम
ऊपर से बस ... इत्ते हैं इनके दिन कम
(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)