खुद दुखी हो के पछाड़ें खा रहे हैं
सब गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं।
हाथ में डेली नमक की लग गई है
घाव दिल के सब उघाड़े जा रहे हैं।
बिल्लियाँ हैं शेर की मौसी सदा से
मांद सिंहों के उजाड़े जा रहे हैं।
दाख़िला ले-देके जिनका हो गया था
ठोंक कर तालें अखाड़े आ रहे हैं।
भेड़िये कब भेड़ बनके छिप सकेंगे
देखें कबतक वे सिंघाड़े खा रहे हैं।
शायरी हमसे कही जाती नहीं अब
कोरे ही सफ़हात फ़ाड़े जा रहे हैं॥
सब गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं।
हाथ में डेली नमक की लग गई है
घाव दिल के सब उघाड़े जा रहे हैं।
मांद सिंहों के उजाड़े जा रहे हैं।
शेर सब प्यारे खुदा को हो गए हैं
दम लगा चूहे दहाड़े जा रहे हैं।दाख़िला ले-देके जिनका हो गया था
ठोंक कर तालें अखाड़े आ रहे हैं।
भेड़िये कब भेड़ बनके छिप सकेंगे
देखें कबतक वे सिंघाड़े खा रहे हैं।
शायरी हमसे कही जाती नहीं अब
कोरे ही सफ़हात फ़ाड़े जा रहे हैं॥
1 टिप्पणियाँ:
भेड़िये कब भेड़ बनके छिप सकेंगे
देखें कबतक वे सिंघाड़े खा रहे हैं।
शायरी हमसे कही जाती नहीं अब
कोरे ही सफ़हात फ़ाड़े जा रहे हैं॥
Yeh lines bahut acchi lagi :)
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