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और चिंता है दुनिया भर की
बाल श्रमिक की चिंता करते
छोटू को चांटे भी जड़ते
चिंता उनको पुरुषवाद की
बीवी चार यथावत रखते
फ़ैक्ट्री में हड़ताल कराते
वेतन बाई का टरकाते
साम्यवाद वे ला के रहेंगे
कार पीयन से फ़्री चमकाते
बात ग़रीबों की करते हैं
धन निवेश अपना करते हैं
ब्राह्मण को वे रोग बताते
मंतर शादी में पढ़वाते
जन्मभूमि पर हॉस्पिटल
बनवाने को धरना धरते
दवा मुफ़्त में ला-लाकर के
जमा खूब लॉकर में करते
श्रीनगर में हुर्रियत की
फ़िकर बड़ी वे सो न पाते
बाल्टिस्तान से हॉङ्गकॉङ्ग तक
क्या होता यह खबर न पाते
स्त्री को अधिकार मिलें सब
दिखती पोलित ब्यूरो में कब?
कृषि पर न लगने देंगे कर
गमले में गल्ला उपजाकर
हर साथी को घर होना है
घर घर में हँसिया बोना है
रक्त बहे बिन लाल न धरती
लाल सलाम कहाँ से करती?
दुनिया में सब जान गये हैं
साम्यवाद पहचान गये हैं
बंदूकों से लोग गिराये
घर मंदिर इस्कूल जलाये
निजी स्वतंत्रता टैंक के नीचे
डिक्टेटर के भजन गवाये
मूर्ति भञ्ज के लोकतंत्र की
जनप्रतिनिधि सब अधम बताये
जनसेवक जमकर धमकाये
मार-मार कर ढेर लगाये
फिर किसको पूजेगी जनता
सो अपने ही बुत जड़वाये
चुरुट छोड़ सब जाग गये बुत
उखड़-उखड़ के भाग गये हैं
सुनता कोई न अब बेपर की
कामरेड को चिंता घर की।
1 टिप्पणियाँ:
बिल्कुल सही...!
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!