(चचा ग़ालिब से क्षमा याचना सहित)
हजारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
जहाँ पढने की बातें हों, वहाँ से बचके हम निकले
शराबी जूस भी लाये, मनाये ये कि रम निकले
मिले भुगतान जो तुमसे, गिने फिर भी वे कम निकले
लगा थैले में पैसे हैं, खुला तो फ़टते बम निकले
चचा सूरज से चमके थे, भतीजे हिम से जम निकले
[अभी का तापक्रम 10°F (शून्य से 12.22°C नीचे) है]
8 टिप्पणियाँ:
[१]
आपके व्यंग्य बाणों की, चुभन ऎसी कि दम निकले.
जहाँ पढ़ने की बातें थीं, वहाँ से बच के हम निकले.
[२]
खयालों में जो रहते थे, छोड़कर गहन तम निकले.
बहुत रोका था अश्रु को, झलकते नयन नम निकले.
[३]
मिले अनुराग जो तुमसे, बोलना अब तो गम निकले.
व्यंग्य-विष को तो शिव पीते, हुए शरशयी भीसम निकले.
(शायर अनुराग से क्षमा याचना सहित)
__________
भीसम = भीष्म
नव वर्ष की शुभकामनायें ... पर वो खस्ता न हों :)
जहाँ पढने की बातें हों, वहाँ से बचके हम निकले!
चाचा ग़ालिब के भतीजे भी खूब निकले !
ab jo jaha se bhi nikle
ham to padhe aur khush hokar nikle
कोई बात नहीं जो आप ,चचा ग़ालिब से कम निकले !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सर्दी में स्वास्थ्य का रखें ख्याल - ब्लॉग बुलेटिन
बहुत खूब!
:)
बहुत निकले मेरे अरमां मगर फिर भी कम निकले।
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!