फत्तू की करवाचौथ तो आपने देख ली मो सम कौन पर अब समय है फत्ते का चौथा देखने की। देखते हैं भाई कित हान्डै सै:
साल भर इतराकर
नाकों चने चबवाकर
फत्ते की घराळी ने
चौथे के दिन छूकर
पंजे धोक लगाई
आशीर्वाद भी मांगा
तो बेचारा नूँ बोल्या
खुश रहो, आबाद रहो
सदा ज़िन्दाबाद रहो
कराची या फैसलाबाद रहो
मन्नै बख्शो, आज़ाद रहो।
17 टिप्पणियाँ:
हा हा!!बहुत मजेदार!!
हा हा हा सचमुच मजेदार है।
उस्ताद जी,
धोक लगाती हाणा चुटकी काटेगी तो योही आसीरबाद पायेगी। फ़त्तू ने लीडर फ़िल्म का गाना भी गाया था, ’अपनी आजादी को हम ...’
जद आपने बात खोल ही दी तो हम क्यूंकर चुप रह जायें?
हा हा हा।
हम सिर्फ़ शुरूआत देखकर आगे का आईडिया लगा लेते हैं जी, फ़ से फ़त्त्तू बस्स।
@मो सम कौन
...सर कटा सकते हैं ...
अब समझ में आया कि कुछ लोग मन्नै सर सर क्यों कहते हैं।
लो जी यो लाइन सेफ सै:
... सर झुका सकते हैं लेकिन नख कटा सकते नहीं ...
@Udan Tashtari
हाँ जी, दर्द तो हर मर्द को होता है …
@NK Pandey
इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते" वाले देश में नारी पुरुष के पैर छूए, यह बात कुछ हज़म नहीं होती है।
"मन्नै बख्शो, आज़ाद रहो" हा हा, मजा आ गया.
@ P.N. Subramanian
सुब्रमण्यन जी, धन्यवाद!
स्मार्ट इंडियन जी नारी के पैर तो पुरूष रोज ही छूता है प्रणाम करता है एक दिन वह भी छूले तो क्या हर्ज़ है...:)
फत्ते के पहले, दूसरे और तीसरे के बारे में बताइए।
और ईर वीर को क्यों भूल गए?
बेचारा फत्ते! शादी के बाद भी परेशाँ है।
एक तो ताऊ का रामप्यारे और दूजा यो फत्ते ब्लागिंग मैंह खूब झंडे गाडण लाग रे सैं :)
आपके ब्लाग की कविताये पढ कर मजा आ गया,
आज पहली बार आपकी शायरी पढी, बहुत देर हँसने के बाद
ये टिप्पणी लिखने बैठा हूँ
मो सम कौन का आभार जिनसे आपक पता मिला
दीपक जी आपका स्वागत है और मो सम कौन का आभार.
वाह वाह बहुत क्गूब फत्ते। शुभकामनायें।
@ गिरिजेश जी:
वस्ताद, गलती वर्तनी की तो नहीं है, लेकिन फ़िर भी अगर आपके कमेंट में ’भी’ की जगह ’ही’ कर दें तो कैसा रहे? हा हा हा
@ मो सम कौन
अनुराग जी - उस्ताद
मैं - वस्ताद
यह भेदभाव नहीं चलेगा। नहीं चलेगा।
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