शनिवार, 24 मार्च 2012

किसने क्या किया?

किसी ने नाम दिया
किसी ने दाम लिया
गिरने लगे जब भी
किसी ने थाम लिया
(~ अनुराग शर्मा)

बुधवार, 14 मार्च 2012

चौपद



मुद्दत के बाद की मेहरबानी, जब इश्क़ पर भरोसा ही न बचा 

दौड़ा दिये खच्चरों को रेस में, बोझ ढोने को यह गधा ही बचा

सजग रहना न होना मशरूफ, अब चलेगी दुलत्ती और जोर से 

देर से सही अक्ल गई है खुल, भाँपने को कोई इरादा न बचा।

बुधवार, 7 मार्च 2012

होलिका के सपने

बरेली के एक शिक्षक कवि श्री ग्रिन्दलाल जी ने आपात्काल पर एक गीत रचा था, "कैसे झूलें रानी, खिसक गया पटरा।" होलिकादहन की रात्रि पर जलते हुए पटरे देखकर उनके शब्द याद आ गये और साथ ही याद आया होलिका मैया का आत्मविश्वास। कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं:

होलिका दहन की तैयारी
कुँवरि चुटैल हैं अब झूल न सकेंगी
और कोई झूलै तो पटरा खींच लेंगी

जीतने का दम नहीं हार उनकी तय है
चीख-चीख आकाश सिर पे ले धरेंगी

आग दिल में है नहीं आँच कैसे होगी
प्रह्लाद मरे कैसे धुआँधार ही करेंगी

अपनों में दोष कभी दानव न देखते
पाप खुद करें आरोप भक्त पे मढेंगी

भाई का राज कई बकरे सजातीं रोज़
रक्तपान में आनन्द क़ुर्बान वे करेंगी

होलिका के दर्शन को बौराये मत घूमो
इस जहाँ में अब कभी पग नहीं धरेंगी

असुरों के खानदान का अंत दूर नहीं
प्रह्लाद मार रहीं जल के खुद मरेंगी॥