शनिवार, 20 जुलाई 2019

एक अकेला इस शहर में

ऐशो-शोहरत की दुनिया में फिरते ये दुखियारे क्यों
दिन क्यों ढलता सूरज डूबे, छाये है अंधियारे क्यों

अपने में गुमसुम से हैं सब कोई किसको क्यों पूछे
काम नहीं जो आने वाला, उसको कोई पुकारे क्यों

डिस्पोज़ेबल दुनिया में हो ज़िकर मरम्मत का कैसे
जो भी फेंका जा सकता है उसको भला सँवारे क्यों

बंद कर दिया पीना, धोना, ब्राह्मणवाद नहाने का
बाढ़ बहाती फिर भी लेकिन नर-डंगर-घर-द्वारे क्यों

मानव हों या देश सभी से नाता तोड़ा जा सकता है
अधिकारों का शोर मचाओ, कर्त्तव्यों के नारे क्यों

महल बड़ा पर सिमट गया हूँ बेसमेंट के कोने में
पेट-पीठ सब एक हुये पर लेते सब चटखारे क्यों

~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"