बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

फत्ते का चौथा

फत्तू की करवाचौथ तो आपने देख ली मो सम कौन पर अब समय है फत्ते का चौथा देखने की। देखते हैं भाई कित हान्डै सै:

साल भर इतराकर
नाकों चने चबवाकर
फत्ते की घराळी ने
चौथे के दिन छूकर
पंजे धोक लगाई
आशीर्वाद भी मांगा
तो बेचारा नूँ बोल्या
खुश रहो, आबाद रहो
सदा ज़िन्दाबाद रहो
कराची या फैसलाबाद रहो
मन्नै बख्शो, आज़ाद रहो।

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

लू

अर्ज किया है:


अपने खतूत में यूँ इश्क की बात न कर महबूब 
तुम रेगिस्तान में हो, मुझे चाँदनी में लू लगती है।


मर्ज-ए-अर्ज का नुस्खा है: 


थोड़ी देर और बैठा करो 'लू' में महबूब 
डब्बे का पानी सिर पर भी पड़े तो काम बने।  




अराउंड ए लू शेर को ऐसे घुमा गया शायर
चान्दनी औ' पानी दोनों बरसा गये फायर

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

नंबर एक - इचिबान - अव्वल दर्ज़ा - न्यूमेरो उनो

मैने कहा तू कौन है
कहने लगा बकवास जी

मैने कहा करता है क्या
उसने कहा तीन-पांच जी

मैने कहा चाहता है क्या
उसने कहा दस्सी-पंजी

मैने कहा चलते नही
उसने कहा हमसे क्या जी

मैंने कहा उस्तादी क्यों
बोला मेरी फितरत है जी

पूछा तेरा उस्ताद कौन
कहने लगा खुरपेंच जी

उसने कहा नम्बर लिखूँ
मैने कहा मुझे बख्श जी

कहने लगा किरपा करो
खस्ता है नंबर एक जी!

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

सस्ता क्यों रोये भला?

महंगे की राह छोड़ कर सस्ती तरफ चले
चीज़ें वही लें यार हम जो जो मुफत मिले

सौदे में लेन लेन हो देना न हो कभी
देने की बात आये तो फर्जी डगर चले

भूखों में बाँट दें अनाज ऐसे गधे नहीं
गोदाम में भले वही बरसों बरस गले

हम चढ़ रहे हैं ऊपरी सीढ़ी हरेक रोज़
फुकरे फकीर चाहें तो सौ बार अब जले

(संशोधित संस्करण - आगे की पंक्तियाँ गिरिजेश की टिप्पणी के बाद)

मुफ्ती कबाब मुफ्ती शबाब मुफ्ती सबाब है
मुफ्ती मिले शराब क्या हीरा भी चाट ले

भजनो अज़ान से इन्हें फुर्सत कहाँ हुज़ूर
मज़हब के नाम पर भले कटते रहें गले

माल-ए-मुफत ने कर दिया बेरहम जनाब
मुफ्तियों का क्या जो राह-ए-हवस चले

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

ईर, वीर, फत्ते का झगड़ा

ईर कहेन वीर से चलो झगड़ा कर आईं ,
वीर कहेन फत्ते से चलो झगड़ा कर आईं, 
फत्ते पूछे - केसे कर आईं? काहें कर आईं?

ईर दिए एक लाफा,
वीर दिए दुइ लाफा, 
फत्ते बस गाल सहलाते रहे। 

झगड़ा गड़ा गया। 

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

तेरा ना होना जाने क्यूँ होना ही है

गिरिजेश राव के प्रोफाइल पर शीर्षक वाली पंक्ति देखी तो चार लाइनाँ मुखरित हुईं - प्रस्तुत है

तेरा मिलना न जाने क्यों खोना ही है
हाथ कभी मिल जाये तो धोना ही है

आम, पपीते के भाव गिरा देगा
पेड बबूल का जिसे बोना ही है

सुबह उठने की क्या बात है भाया
शाम ढले फिर जब सोना ही है

ज़िन्दगी दद्दू की कटेगी डिस्को में अब
मन्दाकिनी समझा जिसे मैडोना ही है

सूखी खानी हो तो मूंगफली खाओ
बादाम खाने से पहले भिगोना ही है।

ख्वाबों की हक़ीकत जब से जानी मैंने
मेरा हंसना न जाने क्यों रोना ही है