गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

प्रेम गिलहरी दिल अखरोट


खस्ता शेर के सभी पाठकों को नववर्ष 2016 के आगमन पर हार्दिक मंगलकामनाएं!

युवा कवयित्री बाबुशा कोहली की पंक्ति "प्रेम गिलहरी दिल अखरोट" को विस्तार दिया अनुराग शर्मा ने

प्रेम गिलहरी दिल अखरोट
प्रेम लतीफा दिल लोटपोट

प्रेम इलेक्शन दिल का वोट
प्रेम गांधी तो दिल है नोट

प्रेम का कर्जा दिल प्रोनोट
प्रेम मथानी दिल को घोट

प्रेम TNT दिल विस्फोट
प्रेम के पत्थर दिल की चोट

प्रेम प्यास दिल सूखे होट
प्रेमी थीसिस दिल फुटनोट

~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

फेसबुकी शायरी

खुदा करे के मुहब्बत में वो मुकाम आये 
ब्लॉककर्ता क्षमा मांगने हमारे धाम आये 
फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे और तुरत ये पयाम पाये
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एक फेसबुकी पैरोडी
अश'आर मेरे यूं तो ब्लॉगियाने के लिए हैं 
 कुछ शेर फेसबुक पर टिपियाने के लिए हैं

फेसबुकी टिप्पणी पर दाग़ की याद
किस क़दर उनको फिराक़-ए-ग़ैर का अफसोस है 
हाथ मलते-मलते सब रंग-ए-हिना जाता रहा (~ दाग़) 
हल्के से कहने से अपनी बात ही हल्की हुई 
फ़ेसबुक की टिप्पणी, सारा मज़ा जाता रहा (~ राग)


अब अपनी चार लाइना चचा गालिब की ज़मीन पर
मैं मर गया तो क्या हुआ बनी रहे ये दुश्मनी 
मेरी कबर पे फातेहा, आ के कोई पढ़ाये क्यूँ। 


और अंत में प्रेमकाव्य
वो मिटियॉर सी गुज़रती हैं 
दिल ये तारे सा टूट जाता है 

 ~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

चंद रामपुरी अश'आर चक्कू वाले

घूमते हैं लय के पहिये, मजबूत है तुक की धुरी
धुल गए सुर्मा बरेलवी, चलते हैं चक्कू रामपुरी

बात कितनी भी खरी हो धार ही बस खास है
कट्टे दुनाली किसे चहिए रामपुरी जो पास है

जिस तरें उस्तरे से हजामत है
चक्कू रामपुरी से,  क़यामत है

ओखल में सर देते हैं और मूसल देख के हँसते हैं 
ऐसे तुर्रमखाँ भी चक्कू रामपुरी को देखके डरते हैं

                            ~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

शनिवार, 7 मार्च 2015

चक्कू रामपुरी के खस्ता शेर

चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा
आग लगा के निकली वो क्यों तुमने मेरा माथा फोड़ा

कारज धीरे होत हैं मन काहे होत अधीर
मुँह तेरा जल जाए न, ठंडी कर ले खीर।

प्रकाशक ने भूखे को रस्ता दिया दिखाय
बर्तन भांडे बिकवा के पुस्तक दई छपाय

कागद कारे जल रहे बुद्धिमता की बास
गूढ कोई समझे नहीं, मूढ़ कवि हैं खास

बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाए
कागज की छतरी बारिश से गल जाये

चलते कम हैं ज़्यादा लात घुमाते हैं
वैसे खुद को गिरती दीवार बताते हैं

और अंत में वर्तमान आतंकवादियों की प्रेरणा पर दुखद दृष्टिपात, मिर्ज़ा गालिब से क्षमायाचना सहित
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
कुछ हैवानों के लिए हूरों का ख्याल सच्चा है