चक्कू रामपुरी "अहिंसक"
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा
आग लगा के निकली वो क्यों तुमने मेरा माथा फोड़ा
कारज धीरे होत हैं मन काहे होत अधीर
मुँह तेरा जल जाए न, ठंडी कर ले खीर।
प्रकाशक ने भूखे को रस्ता दिया दिखाय
बर्तन भांडे बिकवा के पुस्तक दई छपाय
कागद कारे जल रहे बुद्धिमता की बास
गूढ कोई समझे नहीं, मूढ़ कवि हैं खास
बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाए
कागज की छतरी बारिश से गल जाये
चलते कम हैं ज़्यादा लात घुमाते हैं
वैसे खुद को गिरती दीवार बताते हैं
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा
आग लगा के निकली वो क्यों तुमने मेरा माथा फोड़ा
कारज धीरे होत हैं मन काहे होत अधीर
मुँह तेरा जल जाए न, ठंडी कर ले खीर।
प्रकाशक ने भूखे को रस्ता दिया दिखाय
बर्तन भांडे बिकवा के पुस्तक दई छपाय
कागद कारे जल रहे बुद्धिमता की बास
गूढ कोई समझे नहीं, मूढ़ कवि हैं खास
बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाए
कागज की छतरी बारिश से गल जाये
चलते कम हैं ज़्यादा लात घुमाते हैं
वैसे खुद को गिरती दीवार बताते हैं
और अंत में वर्तमान आतंकवादियों की प्रेरणा पर दुखद दृष्टिपात, मिर्ज़ा गालिब से क्षमायाचना सहित
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
कुछ हैवानों के लिए हूरों का ख्याल सच्चा है
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