सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

बस उनकी आँखें ही लॉगिन करती हैं - 2

सनातन कालयात्री के ओरिजिनल शेर:

है अपने दिल का अकाउंट बहुत महफूज
बस उनकी आँखें ही लॉगिन करती हैं!

पर आधारित "बस उनकी आँखें" का भाग एक आपने कुछ दिन पहले पढ़ा था। अब प्रस्तुत है भाग दो। शायरी अपने मेजर साब श्री गौतम राजरिशी जी की है

बड़े बड़ों के पर वे रोज़ कतरती हैं
मेरे कमेन्ट से मैडम लेकिन डरती हैं

एफबी पर तो रहती हैं दिन-रात डटी
चाइटिंग से जाने क्यूँ, हाय मुकरती हैं

उनके बस इक हेलो पर दीवानों की
सौ दो सौ स्माइलियाँ आहें भरती हैं

अपने दिल की आईडी तो है सेफ मगर
बस उनकी आँखें ही लॉगिन करती हैं

(गौतम राजरिशी)

4 टिप्पणियाँ:

Satish Saxena ने कहा…

क्या बात है , गज़ब !!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह, लाजवाब.

रामराम.

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है। लाजवाब लिखा है आपने।

Suman ने कहा…

kya baat hai mast hai :)

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