बुधवार, 31 अगस्त 2011

दोहा पंचनामा

तमाम दोही पुरनियों से क्षमा सहित:

चिंता से चतुराई घटे, दुख से घटे शरीर
गालिब चाचा कह मरे, सबके दादा मीर।

मालिन आवा देखि के, कलियन करी पुकार
फूलि फूलि चुन लियो, न 
तोड़ियो तुम डार।

दुख में सुमिरन ना करो, भगवन भारी भीर
निज कन्धा खाली किया, दे दी तुमको पीर।

सुख में सुमिरन ना करो, जग की है ये रीत
कह कह सब कहकह हँसें, जब जायेगा बीत।

संता ने काँधा दिया, बंता मातम वीर
हँसते रोते
 मर गया, सुनता एक फकीर
...............


और अंत में 'घलुआ' फत्ते की ओर से: 

फत्ते की बाधा हरो, राधा नागरि तोय
सजनी छिप संकेत दे, बुढ्ढा खाँसे खोंय।

शनिवार, 20 अगस्त 2011

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

(शीर्षक हरिशंकर परसाई की एक कृति से साभार)

समय चला पर चले नहीं हम
कम्प हुआ पर हिले नहीं हम

प्याज़ के छिलके छील रहे हैं
रहते छिपकर मिले नहीं हम

हिमयुग आते जाते रहते
बर्फ़ गली पर गले नहीं हम

रिश्वत, लेते हैं तो देते भी हैं
फिर भी कहते भले नहीं हम

अनशन धरने बहुत हुए पर
कितना टाला, टले नहीं हम

(अनुराग शर्मा)

हिंदिओं में बू रहेगी जब तलक ईमान की।
तख्त ए लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।।
~बहादुर शाह ज़फर (1775-1862)