बारह बरसी कूकर जीवे औ' तेरह ले जिये सियार. बरस अट्ठारह क्षत्री जीवे आगे जीवन को धिक्कार. .... क्या लिखते हुए आपके मन के किसी कौने में इस छंद की गूँज तो नहीं थी कहीं? बस वैसे ही जानने की उत्सुकता है. क्योंकि आपने कम शब्दों वाले छंद में गहनतम भावों को पिरोया है.
कुत्ते की दुम बारह बरस तक पाइप में डालो तो भी सीधी नहीं होती. उसकी उम्र १२ वर्ष ही मानी जाती है. मतलब पूरी उम्र उसकी पूँछ पर एक्सपेरिमेंट करना व्यर्थ है. इसलिये जो कुत्ते की दुम की तरह स्वभाव वाला हो तो उसपर सभी प्रवचन निष्प्रभावी ही हैं.
14 टिप्पणियाँ:
kya baat hai.....laya me bandha hua ek sundar kavita
वे काटें तो प्यार-मुहब्बत
हम बोलें तो अत्याचार
यह शेर खस्ता नहीं टनाटन है ...आनंद आ गया अनुराग भाई !!
wah wah wah wah
वाह वाह वाह वाह
अनुराग जी,
संदर्भ अरविन्द मिश्रा जी का आलेख है न?
शानदार है………
उम्र बढ़ी मन खाक बुढाया
ज्ञान की गंगा हो गई पार
कितना खोया कितना पाया
याद दुधारी है तलवार
bahut sundar aur bilkul sach!
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आपकी इस कविता को पढ़कर एक छंद याद हो आया :
बारह बरसी कूकर जीवे
औ' तेरह ले जिये सियार.
बरस अट्ठारह क्षत्री जीवे
आगे जीवन को धिक्कार.
.... क्या लिखते हुए आपके मन के किसी कौने में इस छंद की गूँज तो नहीं थी कहीं? बस वैसे ही जानने की उत्सुकता है. क्योंकि आपने कम शब्दों वाले छंद में गहनतम भावों को पिरोया है.
कुत्ते की दुम बारह बरस तक पाइप में डालो तो भी सीधी नहीं होती.
उसकी उम्र १२ वर्ष ही मानी जाती है. मतलब पूरी उम्र उसकी पूँछ पर एक्सपेरिमेंट करना व्यर्थ है.
इसलिये जो कुत्ते की दुम की तरह स्वभाव वाला हो तो उसपर सभी प्रवचन निष्प्रभावी ही हैं.
.
सतीश जी की पोस्ट से होकर यहाँ आना हुआ। अच्छी रचना।
"उम्र बढ़ी मन खाक बुढाया
ज्ञान की गंगा हो गई पार"
वाह-वाह।
वाह, देखन में छोटे लगे...
majedar aur saty
@सुज्ञ जी,
शुरूआती विचार तो वहीं से आया था।
@प्रतुल जी,
आपके बताये छन्द की पंक्तियाँ सुनी हुई लगती हैं और मुझे उनमें भारत भूमि के सबसे कठिन समय की झलकी दिखती है।
अच्छी रचना।
नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
गज़ब है पूरी गज़ल।
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