आज थोड़ी गम्भीर शृंगारिकता - स्वाद बदलने को :) आशा है आप लोग पसन्द करेंगे।
(1)
फागुन ने चूमा
धरती को -
होठ सलवट
भरा रास रस।
भिनसारे पवन
पी गया चुपके से -
.. खुलने लगे
घरों के पिछ्ले द्वार ।
(2)
फागुन की सिहरन
छ्न्दबद्ध कर दूँ !
कैसे ?
क्षीण कटि -
गढ़न जो लचकी ..
कलम रुक गई।
(3)
तूलिका उठाई -
कागद कोरे
पूनम फेर दूँ।
अंगुलियाँ घूमीं
उतरी सद्यस्नाता -
बेबस फागुन के आगे।
8 टिप्पणियाँ:
तीनो क्षणिकाये बेहतरीन है
होली की शुभकामनाये
आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
सभी पाठकों और संरक्षकों को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
प्रशंसनीय लेखन के लिए बधाई।
========================
निखरती रहे वह सतत काव्य-धारा।
जिसे आपने कागजों पर उतारा॥
========================
आपकी लेखनी में बड़ा दम है।
लेखनी क्या मानो एटमबम है॥
===========================
होली मुबारक़ हो। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
==========================
sabhi khsanikaaye bahut hi sundar .rang parv ki badhai .
फागुन ने चूमा
धरती को -
होठ सलवट
भरा रास रस।
jai baba banaras.......
sunder rachna.....
wah ati sundar
एक टिप्पणी भेजें
आते जाओ, मुस्कराते जाओ!