रविवार, 28 नवंबर 2010

अभी तो मैं जवान हूँ ...

हिन्दी ब्लॉग जगत के चिर-युवा सतीश जी ने "जब हम जवान थे" का राग छेडा तो हमें ख्याल आया कि अगर यह शिकवा अगर खस्ता होता तो कैसा होता:

देखती थीं आंखें सब
सुनते साफ कान थे
हाथ पांव कसरती
कभी तो हम जवान थे

घिस रहे हैं गाल हम
कस रहे है चाल हम
वृद्ध न कहना हमें
रंग रहे हैं बाल हम

महफिलों की शान हैं
गामा पहलवान हैं
वृद्ध न कहना हमें
अभी तो हम जवान हैं|
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रविवार, 21 नवंबर 2010

फत्ते की फालतू

तेरे गुनाह-ए-इश्क़ में सनम मैं तार तार हुआ
चप्पलें चलीं, घिसीं फिर चिपक बेड़ियाँ हुईं
रूमाल में सेंट सेंटी हुआ जब हथकड़ी अदा हुई
बह चले पनारे नाक से आँख कीच कचा हुई
ग़म नहीं फत्ते को कि तुम पोंछने नहीं आई।

गम इसका रहेगा हमेशा कि जब  गिरफ्तार हुआ
जार जार रोया चीख से नींद सबकी हराम किया
लुटा पिटा बिलबिलाता भूख से चिल्लाता रहा
कभी ईर कभी वीर संग रेस्ट्रा कबाब खाती रही
पर दिल के दरवज्जे तुम टिफिन तक न ले आई।

सोमवार, 15 नवंबर 2010

मतलब की दोस्ती

उल्लू के पट्ठे
हुए हैं इकट्ठे
बिठाने चले हैं
अपने ही भट्टे
उल्लू के पट्ठे...

सोमवार, 8 नवंबर 2010

जिसका काम उसी को साजे

रॉबर्ट फ्रॉस्ट की एक कविता है - Miles to go before I sleep. बच्चों के बुढ़ऊ अंकल नेहरू इसे अमर कर गए क्यों कि मृत्यु के समय यह कविता उनकी टेबल पर पाई गई। अब चाहे जो कारण रहे हों, पाई गई और इंस्टेंट हिट हो गई। 

मैंने कभी उन 4 पंक्तियों का अनुवाद किया था जिसे साथियों ने बहुत पसन्द किया।

गहन एकांत वन तिमिर शांत
परंतु प्रतिज्ञाएँ हैं उद्भ्रांत
मीलों जाना इसके पहले की होऊँ शान्त
मीलों है जाना इसके पहले कि होऊँ  शांत।

आज गंगेश को गर्वपूर्वक सुनाया तो उसने धीरे से कहा आप शायद lovely को lonely जान रहे थे। इसीलिए 'एकांत' अनुवाद किये हैं लेकिन lovely ही सही है। मुझे साँप सूँघ गया। घबराहट दबा कर 'जो बोले सो कुंडी खोले' की तर्ज पर मैंने कहा - तुम्हीं कर दो बढ़िया सा अनुवाद। 

थोड़ी देर बाद यह जवाब मिला: 
गहन सुंदर तिमिर वन
उसमे ज़ोर से सन्नाटा बाजे 
जिसका काम उसी को साजे 
दूजा करे तो डंडा बाजे

साथ ही स्माइली के साथ क्षमा प्रार्थना: आपसे ही सीखा है 'खस्ता शेर' ब्लॉग पर। 
हमलोग इस ब्लॉग पर अच्छी सीखें दे रहे हैं कि नहीं?