तेरे गुनाह-ए-इश्क़ में सनम मैं तार तार हुआ
चप्पलें चलीं, घिसीं फिर चिपक बेड़ियाँ हुईं
रूमाल में सेंट सेंटी हुआ जब हथकड़ी अदा हुई
बह चले पनारे नाक से आँख कीच कचा हुई
ग़म नहीं फत्ते को कि तुम पोंछने नहीं आई।
गम इसका रहेगा हमेशा कि जब गिरफ्तार हुआ
जार जार रोया चीख से नींद सबकी हराम किया
लुटा पिटा बिलबिलाता भूख से चिल्लाता रहा
कभी ईर कभी वीर संग रेस्ट्रा कबाब खाती रही
पर दिल के दरवज्जे तुम टिफिन तक न ले आई।
11 टिप्पणियाँ:
behatrin.........maza aa gaya
हाय रे! यह दर्द भरा अफसाना...
एक सच्चे आशिक का यही हाल होता है
बहुत खूब
bahut sundar ! adbhud !
हुए हम जिनके लिए बर्बाद
वो चाहें हमको करें न याद.....
अफसाना उनकी याद में...............!
bechara aashik bahut bura huaa .
bhaayi bdaa zaalim mehbub he tumhaara or bda kleja aashiq he aapka . akhtar khan akela kota rajsthan
फ़त्तू का सनेसा, फ़त्ते के नाम:
और कल्ले मोहब्बत, हम तो पेले से ई समझा रिये थे कि निकम्मा हो जायेगा इसक, विसक, पिरेम, पियार में। अब थानेदार करवायेगा तुझसे इकबाले-जुर्म।
संजय भाई, जमानतीय लाओ - फत्तू गिरफ्तार हो गया है.
eeee fate gai knhaha ............. jo itna fate-fate huye ja rahen hain
ek dam mast! :-)
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!