रविवार, 10 अक्तूबर 2010

तेरा ना होना जाने क्यूँ होना ही है

गिरिजेश राव के प्रोफाइल पर शीर्षक वाली पंक्ति देखी तो चार लाइनाँ मुखरित हुईं - प्रस्तुत है

तेरा मिलना न जाने क्यों खोना ही है
हाथ कभी मिल जाये तो धोना ही है

आम, पपीते के भाव गिरा देगा
पेड बबूल का जिसे बोना ही है

सुबह उठने की क्या बात है भाया
शाम ढले फिर जब सोना ही है

ज़िन्दगी दद्दू की कटेगी डिस्को में अब
मन्दाकिनी समझा जिसे मैडोना ही है

सूखी खानी हो तो मूंगफली खाओ
बादाम खाने से पहले भिगोना ही है।

ख्वाबों की हक़ीकत जब से जानी मैंने
मेरा हंसना न जाने क्यों रोना ही है

6 टिप्पणियाँ:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

एक मूँगफली ऐसी भी होती है जिसको खाने के बाद आदमी यही कहता है - तेरा ना होना होना ही है। जरा देखिए:

मूँगफली

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

ख्वाबों की हक़ीकत जब से जानी मैंने
मेरा हंसना न जाने क्यों रोना ही है
क्या बात है! अन्तिम शेर ने तो गम्भीर कर दिया.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

ज़िन्दगी दद्दू की कटेगी डिस्को में अब
मन्दाकिनी समझा जिसे मैडोना ही है

दद्दु को भी लपेट दिए,
उम्दा शेरों के लिए आभार

Arvind Mishra ने कहा…

बेमिसाल मूंगफलियाँ

Abhishek Ojha ने कहा…

सार्थक लेखन या लेखन? दोनों में से कौन सही है?

Smart Indian ने कहा…

अभिषेक ओझा ने कहा… सार्थक लेखन या लेखन? दोनों में से कौन सही है?

क्यों गज़ब करते हो भाई - पहले बताओ कि
आपका शुभचिन्तक या शुभचिन्तक? दोनों में से कौन सही है?

एक टिप्पणी भेजें

आते जाओ, मुस्कराते जाओ!