(चित्र व दोहे: अनुराग शर्मा)
अंटी में नामा भरा अपनी सुनाते रहिये
माल जो मुफ्त मिले जम के उड़ाते रहिये
नज़्र चूके औ वो सामने पड़ जायें तौ
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये*
हूट करता हो जहाँ, बोर न समझें खुद को
टोके जग सारा तो भी अपनी बताते रहिये
जो कही खूब कही अब तो निकल ले शायर
रात भर शेर सुने सामयीन सताते रहिये
रूप गुण काम नहीं आते हैं इस दुनिया में
सौदागर फूस के हैं स्वर्ण छिपाते रहिये
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* एक प्रसिद्ध शायर की शब्दावली से साभार
जापान से स्वर्णजटित मिष्ठान्न |
माल जो मुफ्त मिले जम के उड़ाते रहिये
नज़्र चूके औ वो सामने पड़ जायें तौ
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये*
हूट करता हो जहाँ, बोर न समझें खुद को
टोके जग सारा तो भी अपनी बताते रहिये
जो कही खूब कही अब तो निकल ले शायर
रात भर शेर सुने सामयीन सताते रहिये
रूप गुण काम नहीं आते हैं इस दुनिया में
सौदागर फूस के हैं स्वर्ण छिपाते रहिये
-----------
* एक प्रसिद्ध शायर की शब्दावली से साभार
8 टिप्पणियाँ:
रूप गुण काम नहीं आते हैं इस दुनिया में
सौदागर घास के हैं स्वर्ण छिपाकर रहिये
सटीक!!
रूप गुण काम नहीं आते हैं इस दुनिया में
सौदागर घास के हैं स्वर्ण छिपाकर रहिये
बढ़िया व्यंग .... अच्छी गजल
वाह !
बहुत खूब महाराज ... लगे रहिए ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ की सलाह याद रखना या फिर यह ब्लॉग बुलेटिन पढ़ लेना
इस जापानी मिष्ठान्न से मेरा क्या होगा? :)
@ शिवम, शुक्रिया!
@ संजय, मिठाई बहुत हैं, दिसम्बर में मन भर के खाना।
हूट करता हो जहाँ बोर न समझें खुद को
टोके जग सारा तो भी अपनी बताते रहिये ।
क्या बात है ।
नज़्र चूके औ वो सामने पड़ जायें तौ
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये*
बहुत सुन्दर और सटीक रचना....
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!