मैने कहा तू कौन है
कहने लगा बकवास जी
मैने कहा करता है क्या
उसने कहा तीन-पांच जी
मैने कहा चाहता है क्या
उसने कहा दस्सी-पंजी
मैने कहा चलते नही
उसने कहा हमसे क्या जी
मैंने कहा उस्तादी क्यों
बोला मेरी फितरत है जी
पूछा तेरा उस्ताद कौन
कहने लगा खुरपेंच जी
उसने कहा नम्बर लिखूँ
मैने कहा मुझे बख्श जी
कहने लगा किरपा करो
खस्ता है नंबर एक जी!
6 टिप्पणियाँ:
1/10
पूछा किसी ने, है ये क्या
मैंने कहा बकवास जी
हा हा हा
अनुराग जी को उस्ताद जी की
खिंचाई तार गई
बाकी कुछ बचा तो
महंगाई..........
सरजी, फ़िर भी खुशकिस्मत हो, उस्तादजी ने एक नंबर तो दे दिया दस में से, एक जगह तो सौ में से एक दे दिया था।
खैर जी, हमने तो आपकी पोस्ट के बहाने रोटी, कपड़ा और मकान के सब गाने फ़िर से दोहरा लिये। हमें आनंद आ गया, आपकी पोस्ट में।
आभार।
ACHCHHA VYANGYA HAI.
मैंने पूछा, अब तक तो आप ऐसे न थे,
बोला, पहली ही बार है जी
आगे भी करोगे ऐसा?
बोला, विचार करेंगे जी
हम तो मुरीद हैं तुम्हारे,
कहना क्या? पता है जी
दिन ऊगा है आपसे,
अच्छी शुरुआत करो जी
@ उस्ताद जी
अब आप तो स्व्यम्भू हैं ...
@ मो सम कौन
हा हा हा जी हाजी।
@ वर्मा जी
धन्यवाद!
@ विष्णु जी
क्षमा बडन को चाहिये (और छोटन पर विश्वास ...)
सादर चरण स्पर्श!
:)छद्मनामियों पर खस्ता व्यंग्य।
वस्ताद के ब्लॉग का शीर्ष वाक्य है - हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग .....
जिसे सच कहने के लिए 'हिम्मत' जुटानी पड़े वह 'उस्ताद'नहीं हो सकता, हाँ राग दरबारी टाइप वस्ताद कहा जा सकता है।
कहते हैं - मैं एक पाठक की तरह अपना काम कर रहा हूँ ...... करता रहूँगा. और अपने को कहते हैं - उस्ताद वह भी 'जी' पुछल्ले के साथ। बलिहारी जाऊँ इस विनम्रता पर!
ईर, वीर और फत्ते के साथ एक चौथा चरित्र अब आवश्यक हो गया है ;)
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