वो आए घर हमारे
कर गए हजम
प्लेट के बिस्कुट सारे।
हाल चाल चली
बोल बाल हुई
डिनर तक रात गई
हमने पूछा जो खाना
चट से उठ कर सकारे।
हाय रे!
चार दिन के बराबर
रोटियाँ जो पकाईं
बीवी बमकी
मुझे झुरझुरी सी आई।
मैं हाथ धो भी लिया
उनको लाज न आई ।
मिलते रहे पसीने के धारे
खा कर उठे वो
मेहनती गुँथाई
लेते रहे डबलिया डकारें।
कह गए चलते चलते
रोटियाँ थीं मोटी और
बिस्कुट कम करारे।
हाय रे!
6 टिप्पणियाँ:
और पालिये ऐसे मेहमान।
अरेरेरे
मेहमान के बारे में यह कहते शरम न आई
अतिथि देवो भव के देश में ऐसी बेहयाई ?
सस्ता शेर .....
कह गए चलते चलते
रोटियाँ थीं मोटी और
बिस्कुट कम करारे।
कहाँ से पधारे
और
कहाँ को सिधारे
ये ज़ुबानी कजरारे
हाय रे! हाय रे!
हाय रे वे कहाँ से पधारे
हाय रे ...
ऐसे मेहमानों से भगवान् बचाए रे...
होते हैं ऐसे भी मेहमान ....सच्ची कहा रे ...!
bahut khub...... bahut khub
likha apne
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!