आलू भरी वो, कचौडी बनाएं ख़ुद भी खाएं, हमें भी खिलाएं आलू भरी वो... भरवां करेले नहीं माँगता हूँ पूरी औ' छोले नहीं माँगता हूँ पत्तों की चटनी बनाकर वो लायें ख़ुद भी चाटें, हमें भी चटायें आलू भरी वो... कैसे बताऊँ मैं भूखा नहीं खा लूंगा मैं रूखा सूखा सही मुझको न थाली सुनहरी दिखाएँ ख़ुद भी खाएं, हमें भी खिलाएं आलू भरी वो... |
अरे पता है कि चित्र में कचौडी नहीं परांठा है - जभी तो कचौडी की तमन्ना है |
आपके खस्ता शेरों का स्वागत है - शर्त इतनी है कि शेर आपके अपने हों - और अगर औटो या ट्रक वाले के हैं तो ट्रैफिक पुलिस का अनुमतिपत्र साथ में नत्थी हो।
धन्यवाद!
[चाय का प्याला और आलू परांठा का चित्र - अनुराग शर्मा द्वारा :: The tea mug and aloo parantha photograph by Anurag Sharma]
5 टिप्पणियाँ:
हा हा!! मजा आया.
वाह वाह क्या शेर हैं। बधाई।
काफी स्वादिष्ट है कविता.
महंगाई के इस जमाने में
खस्ता कचौडी कहां से लाएं
(इसी जुस्तजू में
छू में, फूं में, हूं में
बहरहाल जो भी है)
रखा है परांठा
इसी को खस्ता दिए हो बताए
वाह गुरु वाह
यह कनपुरिया अदांज कहां से हो पाए
वाह क्या स्वादिष्ट कचौरी है
मुंह में पानी आ गया
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