रविवार, 29 दिसंबर 2013

बस उनकी आँखें ही लॉगिन करती हैं

"खस्ता शेर" के ढाबे पे आके सनातन कालयात्री जी कहने लगे कि हमारे शेर को तल के खस्ता कर दो। हमने कहा, ज़रा दिखाये तो उन्ने  दिखाया। हम तो शेर देखते ही समझ गए कि अंगीठी के बस का न है ये शेर, इसके लिए तो भट्टी चढ़ानी पड़ेगी। हमने कहा कि हम अंदर से निकाल के एक गजल अभी-हाल पका देते हैं, खस्ता और कुरकुरी। पहले तो उन्ने थोड़ी नानुकर की लेकिन जब लगा कि भट्टी चढ़ाने में काफी देर लग जाएगी तो मान गए। तो ये तो था उनका ओरिजिनल शेर:
   
है अपने दिल का अकाउंट बहुत महफूज
बस उनकी आँखें ही लॉगिन करती हैं!

और ये है फाइनल खस्ता गजल। अच्छी तरह चबा-चबा के पढ़िये:  

दिल का है मेरे खाता, चौकस रखवाली है
छूट उनको मिली है हर द्वार की ताली है॥

वे नज़रें मिलाते हैं, सीटी हो बजी जैसे
रेले-दिल छूटी है, टेसन हुआ खाली है॥

ख्वाबों में रहा करते, आँखों में बसे हैं वे
हर दिन है दशहरा औ' हर रात दिवाली है॥

ये आँख नहीं खुलती, मैं कैसे नशे में हूँ
भीगे हैं तेरे गेसू, मदिरा की प्याली है॥

दैवी है वो मुखड़ा, सूरज सा दमकता है
ध्रुवपद हुए जाते वे, जो गाते कव्वाली हैं॥

दिल जान हुए तेरे, अब मेरा नहीं कोई
अनुरागी हो "बैरागी", ये रीत निराली है॥

(अनुराग शर्मा)

4 टिप्पणियाँ:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सफ़ेद भेड़ - काली भेड़ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह...वाह...बहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को और सभी ब्लॉगर-मित्रों को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है

Pravin Dubey ने कहा…

शुभानअल्लाह..

priyadarshini ने कहा…

bahut dilchasp...

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