गुरुवार, 31 मार्च 2011

कुत्ते की दुम

कमसिनी के ढेलामार
जोबन में हो गए कटार

वे काटें तो प्यार-मुहब्बत
हम बोलें तो अत्याचार

दूध की मक्खी झटक गए वे
जिन पर वारे थे घर बार

उम्र बढ़ी मन खाक बुढाया
ज्ञान की गंगा हो गई पार

कितना खोया कितना पाया
याद दुधारी है तलवार

14 टिप्पणियाँ:

Anamikaghatak ने कहा…

kya baat hai.....laya me bandha hua ek sundar kavita

Satish Saxena ने कहा…

वे काटें तो प्यार-मुहब्बत
हम बोलें तो अत्याचार
यह शेर खस्ता नहीं टनाटन है ...आनंद आ गया अनुराग भाई !!

Deepak Saini ने कहा…

wah wah wah wah

वाह वाह वाह वाह

सुज्ञ ने कहा…

अनुराग जी,

संदर्भ अरविन्द मिश्रा जी का आलेख है न?

शानदार है………

उम्र बढ़ी मन खाक बुढाया
ज्ञान की गंगा हो गई पार

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

कितना खोया कितना पाया
याद दुधारी है तलवार

bahut sundar aur bilkul sach!

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

.

आपकी इस कविता को पढ़कर एक छंद याद हो आया :

बारह बरसी कूकर जीवे
औ' तेरह ले जिये सियार.
बरस अट्ठारह क्षत्री जीवे
आगे जीवन को धिक्कार.
.... क्या लिखते हुए आपके मन के किसी कौने में इस छंद की गूँज तो नहीं थी कहीं? बस वैसे ही जानने की उत्सुकता है. क्योंकि आपने कम शब्दों वाले छंद में गहनतम भावों को पिरोया है.

कुत्ते की दुम बारह बरस तक पाइप में डालो तो भी सीधी नहीं होती.
उसकी उम्र १२ वर्ष ही मानी जाती है. मतलब पूरी उम्र उसकी पूँछ पर एक्सपेरिमेंट करना व्यर्थ है.
इसलिये जो कुत्ते की दुम की तरह स्वभाव वाला हो तो उसपर सभी प्रवचन निष्प्रभावी ही हैं.

.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

सतीश जी की पोस्‍ट से होकर यहाँ आना हुआ। अच्‍छी रचना।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

"उम्र बढ़ी मन खाक बुढाया
ज्ञान की गंगा हो गई पार"

वाह-वाह।

Rahul Singh ने कहा…

वाह, देखन में छोटे लगे...

शारदा अरोरा ने कहा…

majedar aur saty

Smart Indian ने कहा…

@सुज्ञ जी,
शुरूआती विचार तो वहीं से आया था।

Smart Indian ने कहा…

@प्रतुल जी,
आपके बताये छन्द की पंक्तियाँ सुनी हुई लगती हैं और मुझे उनमें भारत भूमि के सबसे कठिन समय की झलकी दिखती है।

Patali-The-Village ने कहा…

अच्‍छी रचना।
नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

गज़ब है पूरी गज़ल।

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