मंगलवार, 7 सितंबर 2010

कंजूस दोस्त के लिए थोड़ा दुआत्मक हो लें!

ये रहे कुछ फटीचर से शेर:

तुम्हारी जुस्तजू रहे, अदा रहे, गड़ा रहे 
दुआ बस यही कि तू यूँ ही सड़ा रहे। 

हसीं शामें हों, दिलरुबा हो, मैकदा हो 
दुकान पर पेमेंट को तू यूँ ही अड़ा रहे। 

तरन्नुम, तकल्लुफ, तवक्कुफ, उफ उफ 
सब सनम के, तू नाली में यूँ पड़ा रहे।

गिर गईं कितनी चवन्नियाँ फटी जेब से 
रुपयों के आगे तू लिए कटोरा खड़ा रहे। 

जो फँस जाती है हमेशा जीन्स की जेब में 
फटे पर्स उसमें बस बिल कोई बड़ा रहे।   

17 टिप्पणियाँ:

मनोज कुमार ने कहा…

आपकी लेखनी से ये ब्लॉग मज़ेदार रहने वाला है
बिना सोचे-विचारे फ़ॉलोअर बन गया हूं
सजदे में सर झुकाउंगा नहीं आगे आपके
कमीज़ की बटन खोल के तन गया हूं।
कंजूस दोस्त के लिए दुआ करूं, न-करूं मेरी मर्ज़ी
आज दुआ देने में भी कंजूस बन गया हूं।

सतीश पंचम ने कहा…

@गिर गईं कितनी चवन्नियाँ फटी जेब से
रुपयों के आगे तू लिए कटोरा खड़ा रहे।

बढ़िया।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

मजा आ गया . मानो कोई अंतर्मन से कह रहा हो. आदमी का सच बाहर आ रहा है.. धार बनाये रखें ..

rajiv ने कहा…

अर्ज है....
खस्ता शेर पढ़ कर शायर खांसता रहे, बलगम यूं ही गले से झांकता रहे, मरगिल्ला कुत्ता भी उसे भूंक कर भगता रहे, शायर ढेला लिए यूं ही हांफता रहे...

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@ मनोज जी और राजीव जी

शुभ आन ला ला । :)

खस्ते बढ़िया हैं।

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@ अरुण जी,

शुक्रिया।
@मानो कोई अंतर्मन से कह रहा हो.
आदमी का सच बाहर आ रहा है.

पारखी नज़र है आप की। :)

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

vaah bhaayi vaah duaa bhut mzdaar he kya bat he bhaayi kya dushmni he . akhtar khan akela kota rajsthan

बेनामी ने कहा…

गिर गईं कितनी चवन्नियाँ फटी जेब से
रुपयों के आगे तू लिए कटोरा खड़ा रहे।

गज़ब

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

अरे गजब कर दिये सर जी, इस विधा में भी कमाल।
बहुत खूब।

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा! मजेदार!


गिर गईं कितनी चवन्नियाँ फटी जेब से
रुपयों के आगे तू लिए कटोरा खड़ा रहे।

Smart Indian ने कहा…

तुम्हारी जुस्तजू रहे, अदा रहे, गड़ा रहे
दुआ बस यही कि तू यूँ ही सड़ा रहे।

खुदा करे के क़यामत हो और तू आये, नहीं जाये, नहीं आये, नहीं ...

Arvind Mishra ने कहा…

अनूप शुक्ल को को फेयरवेल का इंतजामात हो रहा है का ?

निर्मला कपिला ने कहा…

हा हा हा बहुत खूब हज़ल कही है--- हंसी नही रुक रही। बधाई

anshumala ने कहा…

मै कभी कभी भूल से ही शेरो शायरी और कविता के ब्लॉग पर जाती हु क्या करू मुझे समझ नहीं आती है आज इधर भी भूल से आई थी पर पढ़ कर लगा की यहाँ आने की भूल कर अच्छा किया जितनी मजेदार खस्ता कचोरी था उतनी ही मजेदार चटनी (टिप्पणिया) भी थी |

कचोरिया इतनी ही खस्ता रखियेगा अगली बार सीधे आउंगी |

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

:-)) bahut khoob!

Rohit Singh ने कहा…

हाहाहाहा रोजाना आते रहे तो हम भी आपके प्लेटफॉर्म के बड़े शायर का खिताब पा ही लेंगे। भूली हुई विधा की याद दिलाने के लिए धन्यवाद......
हम भी कभी मिट्टी के तेल में तल
झक्की लोगो को झकझकी सुनाते थे
उनकी चढ़ी त्योरियो को देख
खूब मुस्कुराते थे


चलिए दस साल पहले कहीं नेट पर ही पढ़ा हुआ बेहतर सुन लीजिए

जी मैं आया की तेरे होंठ चुम लूं
जी मैं आया की तेरे होंठ चुम लूं
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हेलो क्या सोचने लगे...हैं सुधर जाओ ..... हां यार ...हद है बेशर्मी की...आगे पढ़ों
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जी मैं आया की तेरे होंठ चुम लूं
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पर इरादा बदल दिया तेरी बहती नाक देखकर

हीहीहीहीही खुद ही हंसना पड़ता है न कई बार इसलिए हीहीहीहीहीहीहीहीही

Rohit Singh ने कहा…

भई इसपर तो एप्रुवल वाला चक्कर हटाओ लगता है दरवाजे पर खड़े हैं औऱ

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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!