फेसबुक पर केवल फालतू बकबक नहीं होती, त्रिकालजयी काव्य का भी सृजन होता है। उसकी व्याख्यायें और विमर्शादि भी घटित होते हैं। एक नमूना:
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चाहे जो कहिये, हिन्दी ब्लॉग जगत को देख कर तो यही लगता है कि कविताओं में महारत स्त्रियों को ही हासिल है। ऐसे ऐसे दिग्गज विद्वान साष्टांग टिप्पणियों और चर्चाओं में लगे होते हैं कि मुझे अपनी समझ पर भारी शंका होने लगती है। पिछले सप्ताह से तो मैं मान बैठा हूँ कि मुझे कविताओं की समझ ही नहीं है।
4 टिप्पणियाँ:
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे ... सावधान - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
धन्यवाद शिवम!
सुन्दर अभिव्यक्ति :)
जय हो फेसबुक!
जय हो कविताई!
जय कवि!
जय विश्लेषक!
जय चर्चाकार!
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