खिड़की पर ओर्किड |
कभी काग़ज़ी बादाम हैं
कभी ये टपके आम हैं
तारीफ़ अपनी क्या करें
जो आदमी गुमनाम हैं
कभी ये बिगड़ा काम हैं
कभी छलकता जाम हैं
कैसे मियाँ मिट्ठू बनें
जो आदमी बदनाम हैं
रक़ीबों का पयाम हैं
सुबह न गुज़री शाम हैं
अपने मुँह से क्या कहें
जो हर तरफ़ नाकाम हैं
7 टिप्पणियाँ:
हम क्या हैं ? ज़रा सोचते हैं ..... विचार करने वाली पोस्ट
अपने बारे में क्या कहें
जो हर तरफ़ नाकाम हैं....are waah ....mere man ki bat...
चिंतन करने के लिए मजबूर करती रचना -हम क्या हैं
क्या कहने, बहुत सुंदर
मूड-मूड की बात है सब !
ना सुबह है ना शाम है ना छाँह है ना घाम है
अनुराग जी निज देश का हर नागरिक ही आम हैं
कोई करप्शन में रमा नित खेलता है 'क्रोर' से
वंचित है कोई नून मिश्रित भात के भी कौर से
यह आम है,वह आम है,दुनिया मि सब कुछ आम है
नाहक हि भारत का बिचारा आम जन बदनाम है
व्ही एन श्रीवास्तव "भोला कृष्णा"
वाह!
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