मंगलवार, 3 जनवरी 2012

2012 की खस्ता शुभकामनायें!


(चचा ग़ालिब से क्षमा याचना सहित)
हजारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पर दम निकले
जहाँ पढने की बातें हों, वहाँ से बचके हम निकले
शराबी जूस भी लाये, मनाये ये कि रम निकले
मिले भुगतान जो तुमसे, गिने फिर भी वे कम निकले
लगा थैले में पैसे हैं, खुला तो फ़टते बम निकले
चचा सूरज से चमके थे, भतीजे हिम से जम निकले
[अभी का तापक्रम 10°F (शून्य से 12.22°C नीचे) है]

7 टिप्पणियाँ:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

[१]
आपके व्यंग्य बाणों की, चुभन ऎसी कि दम निकले.
जहाँ पढ़ने की बातें थीं, वहाँ से बच के हम निकले.
[२]
खयालों में जो रहते थे, छोड़कर गहन तम निकले.
बहुत रोका था अश्रु को, झलकते नयन नम निकले.
[३]
मिले अनुराग जो तुमसे, बोलना अब तो गम निकले.
व्यंग्य-विष को तो शिव पीते, हुए शरशयी भीसम निकले.
(शायर अनुराग से क्षमा याचना सहित)
__________
भीसम = भीष्म

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नव वर्ष की शुभकामनायें ... पर वो खस्ता न हों :)

वाणी गीत ने कहा…

जहाँ पढने की बातें हों, वहाँ से बचके हम निकले!
चाचा ग़ालिब के भतीजे भी खूब निकले !

Anamikaghatak ने कहा…

ab jo jaha se bhi nikle
ham to padhe aur khush hokar nikle

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

कोई बात नहीं जो आप ,चचा ग़ालिब से कम निकले !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

:)
बहुत निकले मेरे अरमां मगर फिर भी कम निकले।

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