काजू सड़ते शराब हो जाते
गदहे सज के नवाब हो जाते
पानी खेतों में पड़ गया होता
गेंहूँ खिल के गुलाब हो जाते
हमें साफा व सूट फिट आता
खुद ही कटके कबाब हो जाते
इश्क़ में सर नहीं गंवाते हम
तेरे दिल की किताब हो जाते
ढूंढते आप पर न मिलता मैं
पल में सारे हिसाब हो जाते
.-=<>=-.
(अनुराग शर्मा) |
15 टिप्पणियाँ:
लाज़वाब ग़ज़ल... कहाँ मिल पता है खेतों को पानी...
वाह-वाह!
लाजवाब!!
बहुत दिन से इधर उधर मुंह चलाते हैं,
तुम्हारे शेर पढ़ के लाजवाब हो जाते |
हमें साफा व सूट मिल जाता
खुद ही कटके कबाब हो जाते
-हाय!! आओ पहना दें साफा और सूट दोनों!!!
आपकी तरह सुन्दर यदि हम भी लिख पाते
तो हम भी इंडियन 'स्मार्ट' हो जाते
साफा और सूट पहन कर जनाब
सभी पर बिजिलियाँ आप गिराते
आप कबाब बनते न बनते
हमें तो जी, बेजबाब करा जाते.
ले लेते यदि रामपुरिया हाथो में,
तो सभी की बोलती ही बंद कर जाते
आपके साफे ने मुझे तो बेजबाब कर दिया है जी.
आभार!
बहुत खूब
बहुत अच्छी गज़ल
शेर तो शेर अनुराग जी .... बहुत जम रहे हैं .... भाई कोई भी कुर्बान हो जाएगा इस अदा पर ....
“गेंहू खिलकर गुलाब हो जाते....”
वाह... खूबसूरत गज़ल....
शुक्रिया!
इश्क़ में सर नहीं गंवाते हम
तेरे दिल की किताब हो जाते
" ha ha ha ha bhut khub...kya andaaj hai..."
regards
नींद की गोलियां खत्म हो लीं,
नहीं तो अब तक सो जाते।
वाह!
बहुत अच्छी गज़ल|धन्यवाद|
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!