बड़े बड़ाई ना तजें, मन में रहे फितूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
चलता राही देख के, कउवा रहा हर्षाय
कपड़ों पर बीट की, जोरू पीटे दौड़ाय।
फत्ते सुमिरन ना करे दुख पाए दिन रात
जब भी गैस खत्म हो, खाये बासी भात।
बैठी चिड़िया डार पर, गाए अजब सा राग
सारे बटन नोच गई, दर्जी तक पहुँचो भाग।
फत्ते माला ना जपो, जीवे तुम्हरी हीर
रटते रटते चुप हुई, अंगुली गठिया पीर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
चलता राही देख के, कउवा रहा हर्षाय
कपड़ों पर बीट की, जोरू पीटे दौड़ाय।
फत्ते सुमिरन ना करे दुख पाए दिन रात
जब भी गैस खत्म हो, खाये बासी भात।
बैठी चिड़िया डार पर, गाए अजब सा राग
सारे बटन नोच गई, दर्जी तक पहुँचो भाग।
फत्ते माला ना जपो, जीवे तुम्हरी हीर
रटते रटते चुप हुई, अंगुली गठिया पीर।
10 टिप्पणियाँ:
"ऐसे लेखक देख कर मन मेरा हर्षाय.....
इनको नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय ....."
bahut badhiya .....padhane ke liye dhanyavaad
कबिरा कहे कमाल सों बस तू इतना सीख ,
जो मन चाहे टीप दे ,पाठक ले सिर पीट !
फत्ते कलकत्ते गए,संग में गया न कोय.
लौटे मेहरारू लिए ,गाओ सब ओय होय.
वाह, वाह!
कविता करना है नहीं जी बच्चों का खेल
दोहे वे जो दूह लें बिना तिलों के तेल ||
चलता राही देख के, कउवा रहा हर्षाय
कपड़ों पर बीट की, जोरू पीटे दौड़ाय।
सच्ची वाणी। यही होता है।
गिरिजेश राव जी हँसाने का पूरा बंदोबस्त किया है आपने| बधाई|
महाकवि 'बिहारी' जी के दोहे की एक पंक्ति को ले कर विद्यार्थी काल में लिखा अपना एक दोहा आप सभी से साझा करता हूँ:-
कहत, नटत, रीझत, खिजत, मिलत, खिलत, लजियात|
भरी पचासी डोकरी, नखरे मोहि दिखात||
हाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहाहा
देख बिरानी चुपड़ी, फ़त्ते जी ललचाय
घर की सूखी ही भली, भूख तो दे मिटाय।
बढ़िया है:)
बहुत ही खुबसूरत रचना...मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ मेरी कविताएँ "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी हर सोमवार, शुक्रवार प्रकाशित.....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे......धन्यवाद
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