गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

फेसबुकी शायरी

खुदा करे के मुहब्बत में वो मुकाम आये 
ब्लॉककर्ता क्षमा मांगने हमारे धाम आये 
फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे और तुरत ये पयाम पाये
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एक फेसबुकी पैरोडी
अश'आर मेरे यूं तो ब्लॉगियाने के लिए हैं 
 कुछ शेर फेसबुक पर टिपियाने के लिए हैं

फेसबुकी टिप्पणी पर दाग़ की याद
किस क़दर उनको फिराक़-ए-ग़ैर का अफसोस है 
हाथ मलते-मलते सब रंग-ए-हिना जाता रहा (~ दाग़) 
हल्के से कहने से अपनी बात ही हल्की हुई 
फ़ेसबुक की टिप्पणी, सारा मज़ा जाता रहा (~ राग)


अब अपनी चार लाइना चचा गालिब की ज़मीन पर
मैं मर गया तो क्या हुआ बनी रहे ये दुश्मनी 
मेरी कबर पे फातेहा, आ के कोई पढ़ाये क्यूँ। 


और अंत में प्रेमकाव्य
वो मिटियॉर सी गुज़रती हैं 
दिल ये तारे सा टूट जाता है 

 ~ चक्कू रामपुरी "अहिंसक"

4 टिप्पणियाँ:

गंगेश राव ने कहा…

तू ना तो तेरा पर्स ही सही
कुछ तो है बिल चुकाने के लिए

Archana Chaoji ने कहा…

नाम पढ़के चक्कू चक्कू चले जा रहे हैं
और हँसी के जो टुकड़े बिखरे उनका जबाब नही!

अजय कुमार झा ने कहा…

हा हा हा हा हा चक्कू रामपुरी की धार बनी रहे

Suman ने कहा…

मस्त शेर है, चक्कु रामपुरी और अहिंसक भी वाह :)

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