"पढें फारसी बेचे तेल" के अनुसरणकर्ताओं से क्षमायाचना सहित ... एक प्रयास
गुड तेल बेचते हैं पढी फारसी नहीं
आरामतलब हैं ये मगर आलसी नहीं
ये प्यासे मर रहे हैं ज़रा आब दिखाओ
खुद उठ के ले सकें इनकी पॉलसी नहीं
बोले बला का फिर भी असरदार न हुए
चमडी ज़रा कडी है नर्म खाल सी नहीं
शीश सलामत है ज़ुबां कट के न गिरी
दुश्मन सुधर रहे हैं कोई चाल सी नहीं
5 टिप्पणियाँ:
वाह वाह क्या कटाक्ष किया है
दुश्मन, राजा, बिल्ली, दुष्ट आदि जब सुधरते दिखें तो समझिये कुछ गड़बड़ है, पता नहीं कौन सी नीति में पढ़ा था।
बोले बला का फिर भी असरदार न हुए
जब बात लोगों के मतलब की नहीं होती तो अच्छी से अच्छी बात भी असर नहीं करती है |
बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - ठन-ठन गोपाल - क्या हमारे सांसद इतने गरीब हैं - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
ये प्यासे मर रहे हैं ज़रा आब दिखाओ
खुद उठ के ले सकें इनकी पॉलसी नहीं
Bahut sundar !
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!