हम सोबर* परदेस में, देस में घुटती होगी भांग।। हो ओ ओ...
हिन्दी कैद में बैठी रोवे, टूटे अंग्रेज़ी की टांग॥
हम सोबर परदेस में, देस में घुटती होगी भांग।। हो ओ ओ...
नेता मंच सजाकर बैठे, करते नूतन स्वांग॥
हम सोबर परदेस में, देस में घुटती होगी भांग।। हो ओ ओ...
रिश्वत बाबू धरना देते, पूरी कर दो मांग॥
हम सोबर परदेस में, देस में घुटती होगी भांग।। हो ओ ओ...
सत्यमेव जी दाब दिये हैं धर मिट्टी की ढांग॥
हम सोबर परदेस में, देस में घुटती होगी भांग।। हो ओ ओ...
मुर्गे कट के छिले तल गये, उल्लू देते बांग॥
हम सोबर परदेस में, देस में घुटती होगी भांग।। हो ओ ओ...
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*सोबर = टुन्नात्मकता का व्युत्क्रमानुपाती
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11 टिप्पणियाँ:
क्या सही मरम्मत की है ......राही मासूम रज़ा भी क्या याद रखेंगे :-)
उल्लू जगते रात, क्या देंगे सुबह बाग?
भाँग घुटाई घुटन है,प्लेट का मुर्गा दाब।
वाह वाह क्या बात हैं
:) बढ़िया है
शुकर है कि रज़ा साहब आज नहीं हैं
घुट रही है जी भांग, आप कब आओगे? हो ओ ओ
बहुतै बढिया।
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छुई-मुई सी नाज़ुक...
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।
ये तो सचमुच रोता आवे, हंसता जावे जैसी बात हो गई.. नए साल की शुभकामनाएं..
ब्लॉग पर अभिव्यक्ति निरंकुश ही नहीं अपितु निडर भी है. विदेश में रहते हुए आपका हिंदी अनुराग देखते ही बनता है. अगर देखा जाए तो पता चलेगा कि हिंदी की दुर्दशा देश में रहने वाले नेताओं के कारण ही हुई है. चाहे प्रधानमंत्री हो, या राष्ट्रपति ...मंत्री हों या कोई संतरी ..सब को अंग्रेजी के नाग ने मानो डस लिया है. अपनी भाषा को जानते हुए भी हिंदी बोलना नहीं चाहते. इन सबको हम क्या समझ दे सकते हैं क्योंकि ऐसा करना उस इत्र बेचने वाले की तरह होगा जो ऐसे लोगों को इत्र बेच रहा था जिन्हें यह नहीं मालूम कि इत्र सूंघने के लिए है न कि चखने के लिए. कहा भी है "करि फुलेल को आचमन मीठा कहत सराहि...रे गन्धी मति अंध तू अतर दिखावत काहि." जिन लोगों को हिंदी के सम्मान और गौरव का कोई अनुभव नहीं हो उन्हें कुछ कहना तो भैंस के आगे बीन बजाने जैसा ही है.
नए साल की हार्दिक शुभकामनायें
भाई साहब ... इस ने तो टुन्न कर दिया ... अब ताज़ा स्टॉक कब आ रहा है ?
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