लटकते जाये हैं गुले गाल आहिस्ता आहिस्ता
सफेदी चरने लगी डाई खिजाब आहिस्ता आहिस्ता।
बुढ़ाने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
झुर्रियाँ आईं चकाचक, टुटे दाँत आहिस्ता आहिस्ता।
अब के पैरों को सलामत मत दबाना जोर से
उंगलियाँ चटकें तुम्हारी, मैं कहूँ आहिस्ता आहिस्ता।
उनसे मिलने की तड़प में हम जो जागे रात भर
खाँसियाँ बढ़ती गईं, फूली साँस आहिस्ता आहिस्ता।
पहले उनके बुलाने से तैयार होते थे तुरत
रंग में देरी बहुत चढ़े खिजाब आहिस्ता-आहिस्ता।
अब के सावन में वो झूले ना पड़ेंगे डार पर
हड्डियाँ तड़क चुकीं, कमर कमान आहिस्ता आहिस्ता।
सफेदी चरने लगी डाई खिजाब आहिस्ता आहिस्ता।
बुढ़ाने लगे जब वो तो हमसे कर लिया परदा
झुर्रियाँ आईं चकाचक, टुटे दाँत आहिस्ता आहिस्ता।
अब के पैरों को सलामत मत दबाना जोर से
उंगलियाँ चटकें तुम्हारी, मैं कहूँ आहिस्ता आहिस्ता।
उनसे मिलने की तड़प में हम जो जागे रात भर
खाँसियाँ बढ़ती गईं, फूली साँस आहिस्ता आहिस्ता।
पहले उनके बुलाने से तैयार होते थे तुरत
रंग में देरी बहुत चढ़े खिजाब आहिस्ता-आहिस्ता।
अब के सावन में वो झूले ना पड़ेंगे डार पर
हड्डियाँ तड़क चुकीं, कमर कमान आहिस्ता आहिस्ता।
पहले वे जो पकातीं खा जाते थे गपक
लपलपी अब जीभ ढूंढ़े है बत्तीसी आहिस्ता आहिस्ता।
लपलपी अब जीभ ढूंढ़े है बत्तीसी आहिस्ता आहिस्ता।
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(नकलनवीश वस्तादों से क्षमा। मीटर ले कर नापने वाले अपना रास्ता नापें या तवक्कुफ, तरबाना, सरबाना तफलीब-ए-तरन्नुम में खुदे कर के पर्ह लें)
15 टिप्पणियाँ:
अभी तो पक रही थी फेस बुक पर
बडी गरम है खाएँगे आहिस्ता आहिस्ता।
बहुत खूब.. ;)
बढिया
बहुत सुंदर
मस्त लगा।
जवानी जम के बरसी थी फ़टाफ़ट
के अब आये बुढापा आहिस्ता-आहिस्ता
दमकता था रूप फला-फूला था बदन
अब निकलती है हवा आहिस्ता-आहिस्ता
वाह!
ये दिल मांगे मोर!
क्या खूब , अंदाज़े-बयाँ निराली है..
हाहाहा बहुत मजेदार ग़ज़ल लिखी है अनुराग जी मजा आ गया पढ़ कर दाद कबूल कीजिये
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
Haa...ha...ha...ha... Mast hai sir ji.....
waah waah ..............खूबसूरत बात हा हा हा ...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
बहुत खूब
लाजवाब...बहुत बहुत बधाई...
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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!