सोमवार, 9 मई 2011

एक पैरोडी - दोस्त दोस्त न रहा ...

(अनुराग शर्मा)

लोन लोन न रहा, कुछ उधार न रहा
नेता जी ने कह दिया तो कर्ज़दार न रहा
अब उधार न रहा ...

अमानतें ये मुल्क़ की चबा रहे हैं चाव से
हुआ अभाव भाव का जो चढ गये बेभाव से
दाल दूर हो गयी, प्याज़ भी चला गया
सूखी रोटियों के संग अब अचार न रहा ...

स्वाभिमान है नहीं करेंगे पूरी मांग जी
आतंकवादी चैन से चबा रहे हैं टांग जी
शहीद मुफ्त में मिटे गयी बेकार जान जी
देशभक्ति का इन्हें अब बुखार न रहा ...

क्या करे गरीब अब ये नोचते हैं बोटियाँ
उसको जल नहीं इन्हें वोदका की टोटियाँ
गड्डी सूटकेस में बडी हो चाहे छोटियाँ
छोडेंगे कुछ देश में, ये ऐतबार न रहा ...

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निम्न पंक्तियाँ संजय अनेजा और विशाल बाघ के सहयोग से:
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गाँव बाढ में बहे, लोग भूखे ही रहे
पूल लबालब किसान फाके फिर भी सहे
महाजनों के पांव तले अन्नदाता पिस रहे
आत्महत्या के सिवा कुछ उपाय न रहा ...

लोन लोन न रहा, कर्ज़दार न रहा
नेता जी ने कह दिया, कुछ उधार न रहा
अब उधार न रहा ...

9 टिप्पणियाँ:

ZEAL ने कहा…

लोन लोन न रहा, कर्ज़दार न रहा
नेता जी ने कह दिया, कुछ उधार न रहा
अब उधार न रहा ...

Beautiful satire.

.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

एक सुन्दर नक़ल गीत
गीत तो खैर मौलिक है बस तर्ज नक़ल की है.
विलंबित स्वर में padhkar pooraa mazaa liyaa.

अनूप शुक्ल ने कहा…

मजे हैं कर्जदार के। :)

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

स्वीमिंग पूल लबालब हैं,
और नल सूखे ही रहे।

Vishal ने कहा…

गाँव बाढ में बहे, लोग भूखे ही रहे
Jo ugaaye ann yahan faake bhi wahi sahe
Mandalon comeetiyon se kaun kitni kahe
Khudkushi karega koi ghamgusaar na raha

Dekhiye shayad kaam aajaaye!
Vishal

Smart Indian ने कहा…

@संजय अनेजा और विशाल बाघ

पंक्तियाँ जोड दी हैं, बहुत बहुत शुक्रिया!

Smart Indian ने कहा…

@ दिव्या जी, प्रतुल जी, अनूप जी,
धन्यवाद!

दीपक बाबा ने कहा…

गाँव बाढ में बहे, लोग भूखे ही रहे
पूल लबालब किसान फाके फिर भी सहे
महाजनों के पांव तले अन्नदाता पिस रहे
आत्महत्या के सिवा कुछ उपाय न रहा ...




आपके साथ साथ संजय को भी साधुवाद.

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

बढ़िया पैरोडी,कबिताई मा भी दम है !

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