रविवार, 3 मार्च 2013

छोड़िये यह इधर उधर का गिला हुजूर


खाने की बात है वही जायका हो जाये 
पान की तमीज थूकना शहर का हो जाये। 
जुकाम है संगीन उनकी नाक आबदार है 
पोंछ कर मिलाना हाथ कहर सा हो जाये। 
आती है नफासत मूली के पराठों के बाद
देख आसपास उठा जरा जहर सा हो जाये।  
इस अंजुमन सारे लीदर लीडर बने बैठे हैं
करें ढंग से तो इंसाँ सुलभ का हो जाये।     
छोड़िये यह इधर उधर का गिला हुजूर 
पते की बात है बस कोई घर का हो जाये। 

6 टिप्पणियाँ:

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहद उम्दा |


कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

सदा ने कहा…

वाह ...बेहतरीन

nitin ने कहा…

bahut khoob

A.G.Krishnan ने कहा…

HA HA HA

SUPERB SUPERB SUPERB SUPERB

Vinay ने कहा…

नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!

राजेश सिंह ने कहा…

पते की बात है बस कोई घर का हो जाये।

सारी बातों का मर्म यही है

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आते जाओ, मुस्कराते जाओ!